Friday, May 2, 2025

इन्द्रधनुही के रंग में रंगल जिन्दगीकुछ अँजोरिया भरल, कुछ अन्हरिया भरल।-: श्री सुभाष पांडेय गोपालगंज बिहार

इन्द्रधनुही के रंग में रंगल जिन्दगी
कुछ अँजोरिया भरल, कुछ अन्हरिया भरल।
कबहुँ सुख के समुन्दर पखारे चरन
कबहुँ माथे प दुख के बदरिया ढरल।

कबहुँ अँजुरी भ' अमरित बिना श्रम मिले
कबहुँ चुटकी भ' चाहत छिंटा के गिरे
कबहुँ पौरुख के पाथर निशानी गड़ल
कबहुँ गतरे-गतर रोग आ के हिरे
जब ले पानी रहे त'ले पानी मिले
कबहुँ पनघट पहुँचि ना गगरिया भरल। 

देखि मुखड़ा सुघर काल्हि जे आ गइल
आजु दोसर भेंटाते छिटिक दूर बा। 
प्रीति के पाँव ठुमुकत दुआरे चलल
टूटि के सुख सपन अब भइल चूर बा
ताज सनमान के माथ सोहत रहे
चूक तनिका भइल त पगरिया गिरल।

सुनि अवाई सजावल गइल सब सड़क 
पग धरा ना परे बिछि गइल फूल बा
नाम पद रोब पदवी तनिक कम भइल
राह सँकरो में अनगिन भरल शूल बा
एक नजर का बदे लोग पागल रहे
आजु तरसत नजर ना नजरिया फिरल। 

भोर ललकी किरिन स्वागतम कहि गइलि
तन जरल दूपहर के दुसह घाम से
साँझि होते सुनाइल विदा शुभ विदा
सुति गइलि राति बिस्तर पर आराम से
सुर सधल ना सदा शुद्ध 'संगीत' के
कंठ में सुर विवादी पइसि के थिरल।

संगीत सुभाष

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