सुसुकि सुसिक रोंवे दुअरा पे बाबुल
घरवा में रोवताड़ी माई न रे
आज होइ गइली बिटिया पराई न रे।
रहि रहि धधके करेजवा में अगिया
एक ही कोयल बिन सून भइली बगिया
ना जाने फिर कब चहकी चिरइया,
जाने बहार कब आई न रे
आज होइगइली बिटिया पराई न रे
रखलीं जतन से बड़ा रे जोगा के
बहिंया के पलना में झुलना झुलाके
अंखिया से दूर गइली दिल के दुलरुई
केकरा से दुखवा बताईं न रे
आज होइगइली बिटिया पराई न रे
प्रीतिया के रीतिया ह गजबे निराली
कहीं के कली कहीं फूल बन जाली
"सागर सनेही" नेह दूनों ओर बांटे
दूगो परिवार के मिलाई न रे
आज होइगइली बिटिया पराई न रे।
विद्या सागर "सागर सनेही
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