Saturday, January 18, 2025

जिनगी के दुपहरिया खोजे जब-जब शीतल छाँव र ेपास बोलावे गाँव रे आपन, पास बोलावे गाँव रे।

जिनगी के दुपहरिया खोजे जब-जब शीतल छाँव रे
पास बोलावे गाँव रे आपन, पास बोलावे गाँव रे।
गाँव के माटी, माई जइसन 
खींचे अपना ओरिया 
हर रस्ता, चौराहा खींचे
खींचे खेत-बधरिया 
गाँव के बात निराला बाटे, नेह झरे हर ठांव रे।
पास बोलावे गाँव रे आपन.. 
भोर इहाँ के सोना लागे
हीरा दिन-दुपहरिया 
साँझ सेनुरिया दुलहिन जइसन
रात चनन-चंदनिया
केसर के खुशबू में डूबल आपन गाँव-गिराँव रे।
पास बोलावे गाँव रे आपन.. 
कचरी, महिया, छेमी, चिउरा
शहर में कहाँ भेंटाये? 
कांच टिकोरा देख-देख के 
मन तोता ललचाये 
गाँव में अवते याद पड़ेला जाने केतना नाँव रे।
पास बोलावे गाँव रे आपन.. 
हर मजहब के लोग साथ में 
फगुआ-कजरी गावे
जग-परोजन पड़े त सब
मिल-जुल के पार लगावे 
दुखवा छू-मंतर हो जाला गाँव में पड़ते पाँव रे।
पास बोलावे गाँव रे आपन.. 
भारत के जाने के बा तs  
जाईं गाँवे-गाँवे 
स्वर्ग गाँव में बाटे
ई  त ऋषियो-मुनि बतावें 
सुनs संघतिया, गाँव में घुसते, हुलसे मन-लखराँव रे ।
पास बोलावे गाँव रे आपन..

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