मोहब्बत से इनायत से वफ़ा से चोट लगती है
बिखरता फूल हूँ मुझ को हवा से चोट लगती है
मिरी आँखों में आँसू की तरह इक रात आ जाओ
तकल्लुफ़ से बनावट से अदा से चोट लगती है
मैं शबनम की ज़बाँ से फूल की आवाज़ सुनता हूँ
अजब एहसास है अपनी सदा से चोट लगती है
तुझे ख़ुद अपनी मजबूरी का अंदाज़ा नहीं शायद
न कर अह्द-ए-वफ़ा अह्द-ए-वफ़ा से चोट लगती है
0 comments:
Post a Comment