बात बहुते रहे जे कहल ना गइल।
कुछ त रउरो तरफ से पहल ना भइल।
हास में लोर के, पीर में प्यार के
जीत के ना कथा नित मिलल हार के
मिटि गइल सब हरफ खत के' धइले धइल।
जाड़ के राति ठिठुरलि रजाई बिना
जेठ सोचत ह बेना किनाई कि ना
अब त सावन परा जात फइले फइल।
देश घर गाँव जनता के' सरकार के
काटि टुकड़ा करनिहार किरदार के
साफ कुरुता के' नीचे लभेरल मइल।
ज्ञान के भौन से बेसुरा तान के
साथ में ढोल फाटल पिटत डॉन के
घोरि के पी गइल सब शराफत कइल।
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