
वक़्त का ये
परिंदा रुका है
कहाँ
मैं था पागल
जो इसको बुलाता
रहा
चार पैसे कमाने
मैं आया शहर
गाँव मेरा मुझे
याद आता रहा
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लौटता था मैं
जब पाठशाला से
घर
अपने हाथों से खाना
खिलती थी माँ
रात में अपनी
ममता के आँचल
तले
थपकीयाँ मुझे दे
के सुलाती थी
माँ ||
सोच के दिल
में एक टीस
उठती रही
रात भर दर्द
मुझको जागता रहा
चार पैसे कमाने
मैं आया शहर
गाँव मेरा मुझे
याद आता रहा
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सबकी...