Thursday, November 27, 2025

निगाहें बचाकर जो चलते हैं मुझसे कभी उनको मुझसे मोहब्बत हुई थी ग़ज़ल

निगाहें बचाकर जो चलते हैं मुझसे 2

कभी उनको मुझसे मोहब्बत हुई थी 2

जो मेहबूब से अजनबी हो गए हैं 2

कभी उनको मुझसे मोहब्बत हुई थी 2

सहेली का घर का बहाना बना कर

मुझे मिलाने आते थे नज़रे झुका के

चलो एक हो जाये कहते हरपल

मेरे सीने से लग कर दुनिया भुला कर

यही बात पर हां इसी बात पर ही 2

बहुत ख़ूबसूरत शरारत हुई थी

कभी उनको मुझसे मोहब्बत हुई थी 2

ये नदियों की लहरें ये पेडों की छायें

यहां होठो पर दिल के जज्बे थे आये

ये कश्मीर की वादियों के नज़ारे

भुला बैठे सब कुछ वो होकर पराए

मैं कैसे भला भूल जाऊं वो पल जब 2

मेरे प्यार के हक में कुदरत हुई थी

कभी उनको मुझसे मोहब्बत हुई थी 2

खतो को छुपा कर डरना संभलना

वो चोरी से छुपाके किताबे बदलना

यातना किसी का ये सब देखा लेना

वो नज़रे झुकाकर हाथो को मालना

कभी दोनों का राज़ खुल जाने पर भी 2

ना पूछो कैसी कयामत हुई थी

कभी उनको मुझसे मोहब्बत हुई थी 2

निगाहें बचाकर जो चलते हैं मुझसे 2

कभी उनको मुझसे मोहब्बत हुई थी 2

जो मेहबूब से अजनबी हो गए हैं 2

कभी उनको मुझसे मोहब्बत हुई थी 2

0 comments:

Post a Comment