मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे
मेरे रास्तों में उजाला रहा
दिये उसकी आँखों के जलते रहे
कोई फूल सा हाथ काँधें पे था
मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे
सुना है उन्हें भी हवा लग गई
हवाओं के जो रूख बदलते रहे
वह क्या है जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे
मोहब्बत अदावत वफ़ा बेरुखी
किराये के घर थे बदलते रहे
लिपट कर चरागों से वो सो गए
जो फूल पे करवट बदलते रहे ____बशीर बद्र
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे
मेरे रास्तों में उजाला रहा
दिये उसकी आँखों के जलते रहे
कोई फूल सा हाथ काँधें पे था
मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे
सुना है उन्हें भी हवा लग गई
हवाओं के जो रूख बदलते रहे
वह क्या है जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे
मोहब्बत अदावत वफ़ा बेरुखी
किराये के घर थे बदलते रहे
लिपट कर चरागों से वो सो गए
जो फूल पे करवट बदलते रहे ____बशीर बद्र
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