Wednesday, October 16, 2013

Musafir ke raste badalate rahe

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे 

मेरे रास्तों में उजाला रहा 
दिये उसकी आँखों के जलते रहे 

कोई फूल सा हाथ काँधें पे था 
मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे 

सुना है उन्हें भी हवा लग गई
हवाओं के जो रूख बदलते रहे

वह क्या है जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे

मोहब्बत अदावत वफ़ा बेरुखी
किराये के घर थे बदलते रहे

लिपट कर चरागों से वो सो गए
जो फूल पे करवट बदलते रहे ____बशीर बद्र




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