Friday, October 25, 2013

Rato ke musafir ho adhero me rahoge By Bashir Badr

रातों के मुसाफ़िर हो , अँधेरों में रहोगे 
जुगनूँ की तरह दिन में जलोगे, न बुझोगे

सब लोग ये कहते हैं कि तुम लौट गये हो 
तुम साथ थे, तुम साथ हो, तुम साथ रहोगे 

क्या अनकही ग़ज़लों की किताबें हैं वो आँखें 
जब पढ़ नहीं सकते हो, तो क्या ख़ाक लिखोगे 

खुशबू की हवेली है मेरे दिल की ज़मीं पर 
वादा करो , इक रोज़ मेरे साथ चलोगे

दिल्ली हो कि लाहौर कोई फ़र्क नहीं है
सच बोल के हर शहर में ऐसे ही रहोगे ____बशीर बद्र




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